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"अज़ीज-ओ-तरीन"

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           "अज़ीज-ओ-तरीन" तू बन बेवफा दिल तोड़ती रह, मैं हर बार नया दिल लाऊंगा, तू लाख अंधेरे कर सजना, मैं नित-नित नया चिराग जलाऊँगा,  * तू मुँह मोड़ के खड़ा होज़ा, मैं पीछे से फिर भी आवाज़ लगाऊँगा, तू बन पतझड़ मेरे उपर झड़ जा, मैं बन सावन तुझे भिगाऊँगा, तू छोड़ हाथ मेरा पीछे रहजा, मैं भी बीच रास्ते मे रह जाऊँगा, तू बन साहिबा धोखा देना, मैं बन मिर्ज़ा फिर भी मरने आऊंगा, * तू डर के पीछे हट जाना, मैं सब को दुश्मन अपना बनाऊंगा, तू भर आँसू आँखों मे समंजौते करेगी, मैं तेरी वजह को ताउम्र रुलाऊँगा, तू गुम हो जाना कूचौ मे कहीं, मैं बन ह्वा तेरे आस-पास लहराऊंगा, तू साथ रहे या ना रहे, मैं तेरी हर याद को जेह्न मे सजाऊंगा, * गर हुआ तू रुसवा " सादिक ", मैं बन हाजी सजदे तेरे दर पर लगाऊँगा, काफीर-ए-कुचे हैं बेशक तुम्हारे, पर मई परचम-ए-हसरत वहाँ लहराऊंगा, होंगी तेरी भी लाख मजबूरियाँ, मैं तुझे कभी अपनी ना सुनाऊंगा, पर सुन ले, ऐ मेरी " अज़ीज-ओ-तरीन " ,,, * तू बंजर धरती ना बन जाना " अमीर ", वहाँ मैं मुरझा जाऊँगा, और लौट कभी ना मैं आऊंगा, और ल