"तलाश"
"तलाश" आँखो मे हया , चेहरे पर बचपन , हा यह उसी की दास्ताँ है आज भी यह दिल भीड़ मे उसी मेरे अपने चेहरे को तलाशता है कुछ शरमाई सी , कुछ घबराई से , सामने से जब वो निकलती थी देख के उसका बला का रूप , कुद्रत भी उस से जलती थी तारे बेच्छाने का करता था मॅन , जिस रह पर वो चलती थी उसका कसूर कहु या नादांगी , सांज भी उस से लाली लेकर ढलती थी उसका मासूमीयत से सरकाया गया दुपटा हमे आज भी फास्तां है आज भी यह दिल भीड़ मे उसी मेरे अपने चेहरे को तलाशता है अपने सहगीर्दो के साथ जब वो हमसे मिलने आए थी एक अजब हया का नूर , वो चेहरे पर अपने लाई थी दिल धकक करके रह गया था , इस तरह वो वहाँ शरमाई थी वो वैसी ही थी जैसे सूरत मैने सपनो मे उसकी बनाई थी है दूर मुझसे वो अब बहुत , पर मन बावरा उसी के पीछे भागता है आज भी यह दिल भीड़ मे उसी मेरे अपने चेहरे को तलाश...