"उजड़े गाव"
"उजड़े गाव"
शहराँ की इस दौड़ ने, ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं
सुधारण
खातिर अपना उल्लू, इन्हाने सारे काम बिगाड़े हैं
ला के आग महारे घराण मे, ये खुद चैन ते सोवे हैं
अपनी सुख-सुविधा खातिर, ये गामा के चैन ने खोवे हैं
बहका के हमने, महरी जिंदगी मे बीज दुखा के बोवे हैं
रे ये के जानेह,
उज्ड़ेह
पड़े इन घराँ मैं, भूखे-प्यासे कितने बालक रोवे हैं
मुर्दें
के ये कफ़न बेच दें, इतने तगड़े ये खिलाड़े हैं
शहराँ की इस दौड़ ने, ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं
जो धरती है जान ते प्यारी, वो माँ महरी ये खोसे हैं
छल-कपटी समाज के निर्माता, आज म्हारे उपर धोसे हैं
खुद खा जावे लाख-करोड़, अर् म्हारी subsides ने कोसे हैं
शर्म आनी चहिय तमने, तहारा ख़ाके ताहारे उपर भोसे हैं
भूल गये उपकार हमारे, सिंघो तहारे उपर गिदर दहाड़ै हैं
शहराँ की इस दौड़ ने, ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं
सुधारण
खातिर अपना उल्लू, इन्हाने सारे काम बिगाड़े हैं
Dev Lohan-Amireaa
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