“दिल्ली का तमाशा”


साथियो, हो सकता है मेरे विचार बहुत सारे लोगों को पसंद ना आएँ पर जो मैने दिल्ली मे 2 दीनो मे महसूस किया वो मैने लिखा है

“दिल्ली का तमाशा”


वाह भई वाह कल एक अजब तमाशा देखा
JNTR-MNTR पर टीवी  लिए आदमी बदहवासा देखा

सज-धज पिकनिक करने लोग वहाँ आए थे
रंग-बिरंगे उजले-उजले वो ढोंग साथ लाए थे
चारों ओर ही नाचने-गाने वाले वहाँ छाए थे
बस एक ओर कुछ लगा रहे नारे हाए-हाए थे

जलते चिरगों तले बुझता हुआ एक माशा देखा
वाह भई वाह कल एक अजब तमाशा देखा

कुछ के हाथों डफलियाँ, कुछ के हाथों दिए थे
कुछ ने CAMERA  के लिए  नए कपड़े सीए थे
उस मातम मे भी बहुत लोग दारू पिए थे
Painted  चेहरे बस TV की सुर्ख़ियों के लिए थे

सरकार का दिया हँसी एक ओर झांसा देखा
वाह भई वाह कल एक अजब तमाशा देखा

एक बहन ने कहा, अहिंसा के यहाँ सब पुजारी है
आज़ादी माँगने का ये संघर्ष हमारा यहाँ जारी है
बैठ के तुम भी गाने गाओ, नारे लगाना गद्दारी है
भाई SIDE होज़ा, TV पर आने की अब मेरी त्यारी है

लीपे-पुते उन चेहरों का बुझा हुआ दिलासा देखा
वाह भई वाह कल एक अजब तमाशा देखा

मैने कहा-
आज़ादी के लिए तो लाशें गिनना पड़ता है
गोलियों बीच लफ़्ज-ए-आज़ादी बीनना पड़ता है
MAKE-UP वाले चेहरे पर खून लिन्ना पड़ता है
“अमिर” बंद कर गाना बजाना-
आज़ादी मिलती नही उसे तो प्यारे छीनना पड़ता है

वहाँ लागो का लोगो के उपर एक पाशा देखा
वाह भई वाह दिल्ली मे एक अजब तमाशा देखा
DEV LOHAN- "AMIREAA"




Comments

Popular posts from this blog

मैं, बधाइयाँ और मानुषी छिल्लर

"जलती मोमबती-बुझती मशाल"

ग़ज़ल- "उफ़ ये चिलमन"